
लता करंज के पेड़ लगभग सारे भारत में समुद्र के किनारों तथा मध्य और पूर्वी हिमालय से लेकर श्रीलंका तक पाये जाते हैं। नदियों के किनारे और पानी के आस-पास इसके पेड़ ज्यादा पाये जाते हैं। इसकी पत्तियां 30 से 60 सेंटीमीटर लंबी तथा इसके पत्तों के गुच्छे में 6-8 पत्ते होते हैं। पुष्प गुच्छे पीत दल तथा फल कांटों से भरे होते हैं। फूल बारिश के महीने में और फल सर्दी के महीनों में लगते हैं।
सामग्री :
- करंज की जड़ के पाउडर : 500 मिलीग्राम
- चित्रक : 2 ग्राम
- सेंधानमक : 2 ग्राम
- सौंठ : 2 ग्राम
- इन्द्रजौ की छाल : 2 ग्राम
दवा बनाने की विधि :
- अगर मल रुककर आता हो या वायु का प्रकोप ज्यादा हो तो लता करंज के 1 से 3 ग्राम पत्तों को घी और तिल के तेल में भूनकर सत्तू के साथ मिलाकर खाना खाने से पहले खाये। इससे बवासीर ठीक होती है।
- लता करंज के कोमल पत्तों को पीसकर लेप बनाकर खूनी बवासीर में लेप करने से रोग में फायदा होता है। इसके 1 से 3 पत्तों को पीस व छानकर रोगी को पिलाने से भी लाभ होता है।
- 500 मिलीग्राम से 2 ग्राम करंज की जड़ के पाउडर में चित्रक, सेंधानमक, सौंठ और इन्द्रजौ की छाल का चूर्ण बराबर मात्रा में मिला लें। यह मिश्रण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करते रहने से दोनों बवासीर में लाभ होता है।
- 2 ग्राम करंज के जड़ की छाल के चूर्ण को गाय के मूत्र में पीसकर रोगी को पिलाएं तथा पीने में केवल छाछ तीन दिन तक लेने से लाभ होता है।
karanj ki paudhey ki banibani dawai kahan mileegi